December 21, 2025

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण पोस्टमार्टम आधारित अवलोकन अध्ययन ने कोविड-१९ (उन्नीस) टीकाकरण और युवा वयस्कों (१८ से ४५ वर्ष) में अचानक हुई मौतों के बीच किसी भी कार्य-कारण संबंध के दावों को खारिज कर दिया है। यह एक साल का अध्ययन, जिसका शीर्षक ‘बर्डन ऑफ सडन डेथ इन यंग एडल्ट्स: ए वन-ईयर ऑब्जर्वेशनल स्टडी एट ए टर्शियरी केयर सेंटर इन इंडिया’ है, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की पत्रिका ‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ है। एम्स के प्रोफेसर डॉ. सुधीर अरावा ने इस प्रकाशन को टीकों को लेकर भ्रामक दावों के बीच विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताया और जनता को सलाह दी कि वे सिद्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों में विश्वास को कम करने वाली गलत सूचनाओं से बचें और केवल विश्वसनीय वैज्ञानिक स्रोतों पर ही भरोसा करें।

अध्ययन में स्पष्ट किया गया कि युवा वयस्कों में अचानक हुई मौतों का मुख्य कारण अंतर्निहित कोरोनरी धमनी रोग (कैड) बना हुआ है, जिसके लिए लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की आवश्यकता है। संस्थान के फॉरेंसिक मोर्चरी में मई २०२३ (दो हज़ार तेईस) से अप्रैल २०२४ (दो हज़ार चौबीस) के बीच प्राप्त कुल २,२१४ (दो हज़ार दो सौ चौदह) मामलों में से १८१ (एक सौ इक्यासी) मामले अचानक मौत के मानदंडों पर खरे उतरे। इन कुल अचानक मौतों में, युवा (१८ से ४५ वर्ष) वयस्कों के मामले ५७.२ प्रतिशत (१०३ मामले) थे, जबकि वृद्ध (४६ से ६५ वर्ष) वयस्कों के मामले ४२.८ प्रतिशत (७७ मामले) थे। युवा मामलों की औसत आयु ३३.६ (तैंतीस दशमलव छह) वर्ष पाई गई, जिससे यह पता चलता है कि हृदय संबंधी बीमारियाँ इस आयु वर्ग में मृत्यु का प्रमुख कारण बनी हुई हैं।

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