
विश्व बैंक की एक ताज़ा रिपोर्ट ने भारत की आर्थिक प्रगति की चकाचौंध के पीछे छिपे कड़वे यथार्थ को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर चार नागरिकों में से एक व्यक्ति गरीब है। यानी लगभग 35 करोड़ लोग आज भी अन्न, वस्त्र और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित हैं। यह आंकड़ा बताता है कि भारत की जीडीपी भले ही वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर हो, लेकिन ग़रीबी के मामले में स्थिति अब भी चिंताजनक है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की रैंकिंग जीडीपी पर कैपिटा में 140वें स्थान पर है, जो यह दर्शाती है कि आर्थिक विकास का लाभ समान रूप से आम नागरिकों तक नहीं पहुंच पाया है। विश्व बैंक ने चेताया है कि 7 करोड़ भारतीय अब भी चरम गरीबी की स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हाल ही में एनडीए सरकार के 11 वर्षों की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए गरीबों के कल्याण की बात कही गई थी, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, गरीबों तक योजनाओं के लाभ कितने प्रभावी ढंग से पहुंचे हैं, इस पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। दरअसल, भारत में गरीबी रेखा का आधिकारिक निर्धारण 2011 के बाद नहीं हुआ है, और केंद्र सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की दैनिक आय 4.20 डॉलर (लगभग ₹360) से कम है, तो उसे गरीब माना जाता है। विश्व बैंक का मानना है कि भारत जैसे विकासशील देश में अब 3 डॉलर की बजाय 4.20 डॉलर की सीमा को गरीबी रेखा का मापदंड माना जाना चाहिए, जैसा कि श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में किया जा रहा है। यदि यह मानक अपनाया जाए, तो भारत में गरीबों की संख्या 35 करोड़ से कहीं अधिक हो सकती है।
शहरी और ग्रामीण इलाकों की स्थिति भी गंभीर है। शहरों में महंगे किराए और अस्थायी नौकरियों की वजह से लोग गरीबी रेखा के करीब हैं, जबकि ग्रामीण भारत में कम होती कृषि भूमि और सीमित आजीविका के विकल्प लोगों की आय को प्रभावित कर रहे हैं। बीमारी या बेरोजगारी जैसे संकट आते ही ऐसे परिवार आर्थिक रूप से पूरी तरह चरमरा जाते हैं।
विपक्ष ने इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस का आरोप है कि “मोदी सरकार जनता को संकट में छोड़कर केवल अमीरों के हित में काम कर रही है। जब देश की आधी आबादी भोजन और वस्त्र के लिए संघर्ष कर रही है, तब प्रधानमंत्री महंगे विदेशी भोजन में व्यस्त हैं।”
रिपोर्ट के अनुसार, देश की 40% संपत्ति केवल 1% लोगों के हाथों में है, जबकि देश की आधी आबादी के पास महज 6.4% संपत्ति है। यह असमानता दर्शाती है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय और समानता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
विश्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि यदि भारत को वास्तविक समावेशी विकास की ओर बढ़ना है, तो उसे ऐसे कदम उठाने होंगे जो देश के हर नागरिक को न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा और गरिमा का जीवन सुनिश्चित करें।